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‘वाघ बकरी’ को कैसे मिला ये नाम, पंचतंत्र की कहानियों से क्या है कनेक्शन?

 चाय के पॉपुलर ब्रांड 'वाघ बकरी' के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर पराग देसाई का 49 साल की उम्र में हाल में निधन हो गया. आवारा कुत्तों के हमले से बचने के दौरान वो चोटिल हो गए और बाद में ब्रेन हेमरेज से उनकी मौत हो गई. लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि चाय कंपनी का ब्रांड नाम 'वाघ बकरी' कैसे पड़ा? चलिए हम बताते हैं...




‘वाघ बकरी’ आज भारत की तीसरी सबसे बड़ी चाय कंपनी है. देश के 24 राज्यों और दुनिया के 60 देशों में मिलने वाली इस चाय का ब्रांड नेम या इसका लोगो आपको कभी चौंकाता नहीं है? सोचने पर मजबूर नहीं करता कि कैसे एक चाय ब्रांड का नाम ‘वाघ बकरी’ पड़ा, इसका बचपन में पड़ी पंचतंत्र की कहानियों से क्या कनेक्शन है?


हाल में ‘वाघ बकरी’ के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर पराग देसाई का निधन हो गया. वह 49 साल के थे. अहमदाबाद में मॉर्निंग वॉक के दौरान उन पर आवारा कुत्तों ने हमला किया. उनसे बचने की कोशिश में वह चोटिल हो गए और बाद में ब्रेन हेमरेज से उनकी मौत हो गई.


अंग्रेजों की नस्लभेद नीति का शिकार

‘वाघ बकरी’ की शुरुआत साल 1892 में हुई. इसके फाउंडर नारणदास देसाई तब अपनी किस्मत आजमाने दक्षिण अफ्रीका गए थे. वहां उन्होंने 500 एकड़ में फैले चाय के बागान खरीदे और चाय बेचने की शुरुआत की. लेकिन उन दिनों भारत की तरह दक्षिण अफ्रीका भी ब्रिटिशों के कब्जे में था. वहां के स्थानीय लोगों और काम करने वाले भारतीयों को नस्लभेद का शिकार होना पड़ता था।


नारणदास देसाई और महात्मा गांधी


नारणदास देसाई भी इस नस्लभेद का शिकार हुए. उसी समय वह महात्मा गांधी के संपर्क में आए. साल 1915 में नारणदास देसाई को दक्षिण अफ्रीका छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा और वह भारत लौट आए. तब महाम्मा गांधी ने उनकी ईमानदारी की तारीफ करते हुए एक पत्र उनको दिया, जिसकी वजह से उन्हें गुजरात में अपना कारोबार जमाने में सहूलियत हुई. महात्मा गांधी के विचारों का असर उनके कारोबार पर भी देखने को मिला.


ऐसे पड़ा ‘वाघ बकरी’ नाम

गुजरात लौटने के बाद 1919 में उन्होंने अहमदाबाद में ‘गुजरात टी डिपो’ नाम से कारोबार शुरू किया. उन्होंने खुली चाय का कारोबार शुरू किया और आप विश्वास नहीं करेंगे 1980 तक उनका परिवारी खुली चाय ही बेचता रहा और उसके बाद ही पैकेज्ड चाय के कारोबार में उतरा.


नारणदास को अंग्रेजों के नस्लभेद ने भीतर तक झकझोर के रख दिया था. इसलिए 1934 के आसपास उन्होंने ‘गुजरात टी डिपो’ पर बिकने वाली चाय को ‘वाघ बकरी’ मार्का के नाम से बेचना शुरू कर दिया. इस ब्रांड इमेज ने उन्हें नई पहचान दी और आज ये पूरे देश में एक पॉपुलर ब्रांड है.


क्या कहता है ‘वाघ बकरी’ का लोगो?

आप ‘वाघ बकरी’ चाय के लोगो को देखेंगे, तो पाएंगे कि उसमें एक आदमी हाथ में चाय लिया है. वहीं एक प्याले में बकरी और बाघ दोनों एक साथ चाय पी रहे हैं. कंपनी की वेबसाइट के मुताबिक ये लोगो आम लोगों के बीच के आपसी सौहार्द और साथ रहने को दिखाता है. इसमें वाघ जहां उच्च वर्ग की निशानी है, तो बकरी निम्न वर्ग की, लेकिन चाय एक ऐसी चीज है जहां अमीर-गरीब का ये फर्क मिट जाता है.


मार्केटिंग की दुनिया के सबसे बड़े नाम फिलिप कोटलर ने भी कंपनी के ब्रांड लोगो और उसकी इंस्पिरेशन को अपनी किताब में जगह दी है. उन्होंने ब्रांडिंग के इस आइडिया को काफी अनोखा बताया है.


पंचतंत्र की कहानियों से कनेक्शन

‘वाघ बकरी’ का लोगो भारत में प्रचलित ‘पंचतंत्र की कहानियों’ से प्रेरित भी बताया जाता है. विष्णु शर्मा द्वारा रचित नीतिशास्त्र की पुस्तक पंचतंत्र भारत के आम जनमानस के बीच खूब पढ़ी जाने वाली किताब है. मूल रूप से संस्कृत में लिखी गई ये पुस्तक ईसा से भी 200 वर्ष पहले की बताई जाती है. इसकी कई कहानियां जातक कथाओं से मेल खाती हैं. विष्णु शर्मा ने अपनी इस पुस्तक में पशु-पक्षियों के किरदार के माध्यम से सामाजिक चेतना जगाने और संदेश देने का काम किया है. लोगों को सही गलत की समझ और नैतिक शिक्षा देने में ये बेहद काम आती है. ठीक इसी तरह जानवरों के माध्यम से सामाजिक संदेश देने का काम ‘वाघ बकरी’ का लोगो भी करता है.


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